पुराणों में वर्णित सती और पारवती की कहानी
सती और पारवती
सती और पारवती दोनों ही भगवन शंकर की पत्निया कहलाती है। और कहा जाता है की वह दोनों एक स्वरूप है। पर दोनों की कहानिया अलग अलग दर्शाई गई है। तो आइये जानते है पुराणों में वर्णित सती और पारवती की कहानी।
सती की कहानी:
सती राजा दक्ष की पुत्री थीं और उन्होंने अपने पिता की इच्छाओं के विरुद्ध भगवान शंकर से विवाह किया था। राजा दक्ष ने एक बार एक पवित्र यज्ञ किया और भगवान शंकर को छोड़कर सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया।
सती भगवान शंकर की इच्छा के बिना इस यज्ञ में चली गईं, जो अपने पिता से बिना निमंत्रण के वो अपने पिता से बड़ी क्रोधित थी।
जब सती ने अपने पिता से सवाल किया कि भगवान शिव को आमंत्रित क्यों नहीं किया गया तो उन्हें किसी स्पष्टीकरण के बजाय केवल कठोर शब्द ही मिले।
सती अपने पिता के इस व्यवहार पर अपमानित हुई, और खुद को यज्ञ में जला दिया। जब भगवान शंकर को इस घटना के बारे में पता चला तो वह बहुत परेशान व्याकुल हो उठे ,और प्रलाप में उनके कंधों पर सती के अर्धजले शरीर के साथ विनाशकारी तांडव करने लगे।
यह भयानक दृश्य देखकर सभी घबरा गए। ब्रह्मांड को बचाने और भगवान शंकर का ध्यान हटाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र की सहायता से सती के शरीर को टुकड़ों में काट दिया।
सती के मृत शरीर के तमाम टुकड़े अलग-अलग स्थानों पर गिर गए और पत्थर के टुकड़े हो गए। फिर भगवान् शंकर शांत हुवे ,ये सभी स्थान शक्ति के पवित्र पीठ बन गए।
इन शक्तिपीठों को विभिन्न रूप से संख्या में 52, 72 या 108 के रूप में वर्णित किया गया है और ऐसे स्थानों पर पड़ने वाले सती के शरीर के स्थानों या विभिन्न हिस्सों को विभिन्न पवित्र शास्त्रों में अलग-अलग वर्णित किया गया है।
सती ने शिव के प्रति प्रेम और भक्ति के लिए एक बार फिर से पारवती के रूप में पुनर्जन्म लिया।
पारवती की कहानी
वह राजा हिमावत और मैना की बेटी के रूप में जन्म लिया। कहा जाता है कि वह सती है, फिर से भगवन शंकर को पति के रूप में पाने के लिए जिनका पुर्नजन्म होता हे। जब वह बिनविवाहिता थी तब उनका नाम गौरी था।
उन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी । अविवाहित कन्याए पुण्यशाली पति की प्राप्ति के लिए माता गौरी का व्रत रखती है। अन्य कथाओं में यह कहा जाता है कि सती की मृत्यु पर शिव जी की निराशा को देख उमा हिमवती ने खुद को पारवती के रूप में प्रकट किया।
इस प्रकार सती और पारवती की कहानी से पति प्रेम और भक्ति का साक्षात प्रमाण मिलता है। जिससे उनको दूसरा जन्म लेने के बावजूद वह भगवन शंकर को ही अपने पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या करती है।
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