शाकम्भरी देवी के 3 शक्तिपीठ | Shakambhari Temple History in Hindi

शाकम्भरी देवी के 3 शक्तिपीठ
शाकम्भरी देवी के 3 शक्तिपीठ

शाकम्भरी देवी माँ आदिशक्ति देवी दुर्गा का एक सौम्य अवतार हैं। इन्हे अष्टभुजा से भी दर्शाया गया है। माँ शाकम्भरी ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी, भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा है। भारत देश मे माता शाकंभरी के अनेक पीठ है। लेकिन शक्तिपीठ केवल एक ही है, जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग मे स्थित है। और उत्तर भारत मे वैष्णो देवी के बाद अगर कोई दूसरा मंदिर है तो वह सहारनपुर मंदिर है। इसके अलावा दो मंदिर भी है शाकम्भरी माता राजस्थान,को सकरायपीठ कहते हैं। जोकि राजस्थान मे है और सांभर पीठ भी राजस्थान मे है। वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं। नौ देवियों मे माँ शाकम्भरी देवी का स्वरूप सबसे सौम्य और ममता से भरा है।

शाकंभरी माता कौन है?

मां दुर्गा के अनेक रूप है, जिसमे से एक रूप शाकम्भरी देवी का है।

शाकंभरी माता का जन्म कब हुआ था?

मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है की 10 जनवरी, शुक्रवार को पौष मास की पूर्णिमा को माँ शाकम्भरी देवी का जन्म दिन मनाया जाता है।

भारत देश में शाकम्भरी देवी माता के तीन शक्तिपीठ स्थापित किए गए है।

उदयपुरवाटी में कौन सा मंदिर है?

पहला शक्तिपीठ राजस्थान के सीकर जिले के उदयपुरवाटी के पास है, जो सकराय माताजी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है की पांडवो ने अपने भाइयों और परिजनों का युद्ध में वध किया था, इसीलिए उस पाप की मुक्ति के लिए वह अरावली की पहाड़ियों में रुके थे। तब युधिस्ठिर ने पूजा अर्चना के लिए माता सकराय की स्थापना की थी, उसी को अभी शाकम्भरी देवी मां के रूप में माना जाता है।

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यह मंदिर सीकर जिले से 56 किमी दूर और उदयपुर वाटी से 16 किमी दूर अरावली की हरी वादियों में स्थित है। यहां पर आम्र कुंज तथा स्वच्छ जल का झरना बहता है, जो अत्यंत आकर्षित करता है। इस शक्तिपीठ पर नाथ संप्रदाय के लोगो का वर्चस्व है।  घुसर और धरकट्ट के खंडेलवाल वैश्यो ने धन इकठ्ठा करके इस मंदिर की स्थापना की थी। इसीलिए यह मंदिर उनकी कुलदेवी के रूप में माना जाता है।

इस मंदिर को 7 वी सदी में स्थापित किया गया था। इसमें देवी सकराय, गणपति और कुबेर की प्राचीन मूर्तियां है। इसकी शिलाओं पर इन तीनो देवी देवताओं की स्तुति बड़े भावपूर्वक लिखी गई है। इसके आसपास जटा शंकर मंदिर तथा आत्ममुनि आश्रम भी है।

शाकंभरी माता किसकी कुलदेवी है?

दूसरा शक्तिपीठ राजस्थान जिले के सांभर के समीप स्थित है, जिसका नाम शाकुम्भर है। शाकम्भरी देवी सांभर की अधिष्ठात्री है। इसी लिए इस जिल्ले का नाम सांभर पड़ा। शाकुम्भरी माता को चौहान राजवंश की कुलदेवी माना गया है। यह शक्तिपीठ सांभर जिले से 15 किमी दूर है।

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महाभारत के समय पर एक असुर राजा था। उसके साम्राज्य का एक भाग यह सांभर जिला था। यहां पर शुक्राचार्य भी निवास करते थे, जो की असुरों के कुलगुरु थे।

उनकी पुत्री देवयानी का विवाह नरेश नामक युवक के साथ हुआ था। यहां देवयानी को समर्पित एक मंदिर भी स्थापित किया गया है, और माता शाकुम्भरी को समर्पित मंदिर का निर्माण किया हुआ है, जानकी सबसे प्राचीन है, और माना जाता है, की यह देवी की मूर्ति स्वयं उत्पन्न हुई थी।

ऐसा माना जाता है, की चौहान राजपूतों को कुलदेवी शाकम्भरी देवी है। एक समय पर जब यह धन संपत्ति को लेकर होनेवाले जगडो के कारण सांभर प्रदेश के लोग परेशान हुए थे, तब माता ने यहां स्थित वन को बहुमूल्य धातुओं में परिवर्तित कर दिया था, तब लोगो ने इस वरदान को श्राप समज लिया था। लोगो ने माता से इस वरदान को वापस लेने को कहा तो माता ने सारी चांदी को नमक बना दिया था।

यहां पर राजा ययाति की दो रानियां देवयानी और शर्मिष्ठा के नाम पे एक विशाल सरोवर और कुंड भी बनाया गया है।

सहारनपुर में कौन सी माता का मंदिर है?

तीसरा शक्तिपीठ उत्तरप्रदेश के मेरठ के सहारनपुर में 40 किमी दूर स्थित है। इस मंदिर में माता शाकुम्भरी देवी, भीमा देवी, भ्रामरी देवी तथा शताक्षी देवी की प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर कस्बा बेहट से 15 किमी दूरी पर स्थित है। यहां पर माता का मंदिर नदियों के बीच में तथा पहाड़ और जंगलों के बीच में बनाया गया है।

शाकुम्भरी देवी से जुड़ी एक प्राचीन कथा प्रचलित है।

शाकम्भरी देवी कथा

प्राचीन समय में एक बार दुर्गम नाम के राक्षस ने अत्यंत आतंक मचाया था। उस राक्षस ने ब्रह्मा जी से। चारो वेद चुरा लिए थे। और तब सौ वर्षों तक वर्षा नही हुई थी। तब अन्न जल के अभाव के कारण लोग मर रहे थे। तब शाकंभरी देवी के रूप में मां दुर्गा ने अवतार लिया था। उनके सौ नेत्र थे। उन्होंने अपने नेत्रों का प्रयोग कर रोना शुरू किया और इतने आंसू बहाए की पूरी धरती पर जल प्रवाहित हो गया। फिर उन्होंने उस दैत्य को खत्म कर दिया था।

दूसरी प्राचीन कथा के अनुसार मां ने सौ वर्षो तक तप किया था और वह महीने के अंत में सिर्फ शाकाहारी भोजन करती थी। जिस जगह पर सौ वर्षो तक पानी भी नहीं था वह तप करने से पैड पौधे उत्पन्न हो गए थे। तब साधु संत उनका चमत्कार देखने आए और उनको शाकाहारी भोजन दिया । माता सिर्फ शाकाहारी भोजन करती होने के कारण उनका नाम शाकमभरी देवी पड़ा था।

शाकुम्भरी देवी की पूजा अर्चना करने वाले भक्तो का घर हमेशा धनधान्य तथा अन्न से भरा रहता है।


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