हरतालिका तीज 2021: जाने तिथि, मुर्हत, पूजा विधि,और महत्व

हरतालिका तीज 2021: जाने तिथि, मुर्हत, पूजा विधि,और महत्व
हरतालिका तीज 2021: जाने तिथि, मुर्हत, पूजा विधि,और महत्व

भाद्र वद मास के शुक्ल पक्ष के तृत्य तिथि के हस्त नक्षत्र में कुंवारी कन्याए एवं सौभाग्यवती स्त्रीया पति सुख को प्राप्त करने के लिए, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हे। इस व्रत को करने से स्त्रीयो को अखंड सौभाग्यवती का वरदान तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो चलिए जानते है, विस्तार से इसके बारे में तो अंत तक ज़रूर बने रहिएगा।

2021 में हरतालिका तीज व्रत कब है?

इस साल हरतालिका तीज 9 सितम्बर 2021 गुरुवार को मनाई जाएगी। इसका प्रातः काल मुहूर्त  सुभह 6 से 8. 30 रहेगा और प्रदोष काल मुहूर्त शाम 6.30 से 8.51 रहेगा।

हरतालिका तीज का क्या महत्व है?

मान्यता हे, की इसी दिन शिव और पार्वती का पुनः मिलन हुआ था। यह व्रत खासकर सुहागनों के लिए है। 

सुहागने अपने वैवाहिक जीवन को सुखी से जीने के लिए यह व्रत करती है। लेकिन कही जगहो पर कुंवारी लड़किया भी अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत करती है।

हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है?

कहा जाता है की माँ पार्वती शिवजी को पाना चाहती थी, इसलिए उन्होंने कठिन तपस्या की थी। इसी तपस्या के दौरान पार्वती की सहेलिया पार्वती का हरण कर लिया और इसी कारण इसे हरतालिका तीज व्रत कहा जाता है।

हरतालिका का क्या अर्थ है?

हरतालिका का अर्थ दो शब्दों को अलग करे, जैसे हर का अर्थ होता है, हरण करना, और तालिका का अर्थ सखी से जोड़ा गया है। इस तरह दोनों शब्दों से हरतालिका बनता है।

हरतालिका तीज की पूजा कैसे करे?

हरतालिका तीज 2021 की पूजा में पंचामृत, दीपक, कपूर, कुमकुम ,सिंधुर ,चंदन ,वस्त्र ,कलश ,श्रीफल , नीलपंख ,तुलसी ,मंजरी ,अविर ,जनेऊ ,फल ,धतूरे का फल, फुल ,काली मिट्टी , रेत ,केले का पत्ता, माता गौरी के लिए सुहाग का सामान की जरुरत होती है।

यह व्रत तीन दिन का होता है। प्रथम दीन स्त्रियाँ सुबह नाहकर खाना खाती है, तथा दूसरे दीन निर्जला उपवास रखती है, और संध्या समय में स्नान करके शुद्ध नए वस्त्र धारण कर पार्वती और शिव की पूजा रेत की प्रतिमा बनाकर करती है।

तीसरे दीन वह अपना उपवास तोड़ती है, और चढ़ाये गए पूजन सामग्री को दान स्वरुप ब्राह्मण को देती है। पूजन में रहे रेत मिटटी को जल प्रवाहित करती है।

गर्भवती महिलाएं इस व्रत में पूजा के बाद जल का सेवन कर सकती है।  इस दीन शिव पार्वती या गणेश की मूर्ति रेत या काली मिटटी से अपने हाथो से बनानी चाहिए।

रंगोली तथा फूल से सजाना चाहिए तथा चौकी पर साथिया बनाकर उस पर थाल रखे ,उस थाल पर केले के पत्ते रखे और प्रतिमा को केले के पत्ते पर स्थापित करे। 

उसके बाद एक कलश लेकर उसपर श्रीफल रखे और दीपल जलाए , कलश पर एक लाल धागा बांधे। 

खड़े प्रसाद बनाकर भोग लगाए , फिर उस पर जल चढ़ाये फिर कुमकुम हल्दी चावल आदि से कलश की पूजा करे। 

पूजा में माँ पार्वती को सुहाग का सारा सामान चढ़ाना चाहिए।  शिवजी को धोती या अंगोछा चढ़ाए , उसके बाद हरतालिका व्रत की कथा सुने या पढ़े।

उसके बाद प्रथम गणेश की आरती फीर शिवजी की आरती और अंत में माँ गौरी की आरती करे और फीर भगवान की परिक्रमा करे। 

इस दिन रात भर जागरण करके भगवान शिव पार्वती का पूजन कीर्तन और स्तुति करनी चाहिए। 
दुसरे दिन प्रातः काल स्नान करके माता गौरी को पूजा में जो सिंदूर चढ़ाया गया हो, उसे सुहाग लेना चाहिए। 

उसके बाद चढ़ाए हुए प्रसाद या हलवे से अपना उपवास तोडना चाहिए। उसके बाद चढ़ाए हुए सुहाग सामग्री को और धोती या अंगोछे को ब्राह्मण को देना चाहिए। यह व्रत जो स्त्रियाँ एक साल करती है, उसे प्रत्येक वर्ष यह व्रत करना चाहिए।


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