सर्वपितृ अमावस्या 2021: जाने तिथि, महत्व और कथा
सर्वपितृ अमावस्या 2021 कब है?
अश्विन माह की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। यह पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है। इस साल सर्वपितृ अमावस्या 6 अक्टूबर को है।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
इस दिन सभी पितृओ के निमित श्राद्ध किया जाता है। इस दिन गाय, कुत्ते के लिए भोजन निकाला जाता है।
माना जाता हे, की सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी पितृ, पशु-पक्षीओ के रूप में आपका भोजन स्वीकार करके आशीर्वाद प्रदान करते है। इस दिन विधवान ब्राह्मण को आमंत्रित कर उसे भोजन कराना चाहिए और जरुरत मंद को भी अन्न का दान करना चाहिए।
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सर्वपितृ अमावस्या की कहानी
एक बार श्रेष्ठ पितृ अग्निस्वाद और बहिष्पद की मानसी कन्या अक्षदा घोर तपस्या कर रही थी। वह तपस्या में इतनी लीन थी की तपस्या करते-करते 1000 वर्ष बीत गए।
उनकी तपस्या के तेज से पितृलोक भी प्रकाशित होने लगा। इस वजह से सभी श्रेष्ठ पितृगण प्रसन्न होकर अक्षदा को वरदान देने को एकत्रित हुए और अक्षदा के पास गए और कहा हम सभी तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न है, इसलिए जो चाहो वो वर मांग लो।
लेकिन अक्षदा ने पितृओ की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। वह उनमे से एक अति तेजस्वी पितृ अमावस को बिना पलक जपकाएँ निहारती रही।
पितृओ के बार-बार पूछने पर अक्षदा ने पूछा की क्या आप सच में वर देना चाहते हे, तब वह तेजस्वी पितृ अमावस ने कहा वरदान पर तुम्हारा अधिकार सिद्ध है।
बिना किसी संकोच के वर मांग लो। तब अक्षदा ने कहा की यदि आप मुझे वर देना ही चाहते है, तो में आपके साथ आनंद पूर्वक रहना चाहती हु।
यह सुनकर सभी पितृगण क्रोधित हो गए और उन्होंने अक्षदा को श्राप दिया, की वह पितृलोक से प्रतीत होकर पृथ्वीलोक जाएगी।
अक्षदा यह सुनकर पितृओ के पैरों में गिरकर रोने लगी। अक्षदा के आंसू देख पितृओ को दया आ गयी।
उन्होंने कहा तुम पतित योनि में श्राप मिलने के कारण पतस्य कन्या के रूप में जन्म लोगी। भगवान ब्रह्मा के वंशज महर्षि पराशर तुम्हे पति के रूप में प्राप्त होंगे।
तुम्हारे गर्भ से भगवान व्यास जी जन्म लेंगे। उसके उपरांत अन्य दिव्य वंशो में जन्म लेते हुए तुम श्राप मुक्त होकर पितृलोक में वापस आ जाओगी।
यह सुनकर अक्षदा शांत हो गयी, अपने रूप एवं सौंदर्य से अप्सराओ को भी लज्जित करनेवाली अक्षदा के प्रणय निवेदन को अस्वीकार किये जाने पर सभी पितृओ ने पितृ अमावस की प्रशंशा की और वरदान दिया की , हे अमावस ! आपने अपने मन को भटकने नहीं दिया, इसलिए यह पुण्य तिथि आपके नाम अमावस से जानी जाएगी।
कोई भी व्यक्ति पुरे साल में श्राद्ध , दान आदि नहीं करता और सिर्फ इस तिथि पे श्राद्ध , दान करता हे, तो उसे सभी तिथिओ का फल प्राप्त हो जायेगा।
तभी से इस तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता है। और इसे सर्वश्रेष्ठ और फलदायी माना जाता हे।
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