वट सावित्री व्रत 2021: कब है वट सावित्री व्रत? जानें तिथि, मुहूर्त, पूजन सामग्री, पूजा विधि एवं व्रत कथा
वट सावित्री पूजा कब है 2021 | वट सावित्री व्रत 2021
आज हम बात करते है, वट सावित्री व्रत 2021 किस दिन है, क्योंकि इसी दिन सूर्य ग्रहण भी है, जोकि साल का पहला सूर्यग्रहण है। ऐसे में बहुत सारे लोगों के मन में प्रश्न होंगे कि हमें इस दिन व्रत करना चाहिए या नहीं करना चाहिए, और क्योंकि लॉकडाउन है, महामारी के चलते हो सकता है, कि आपको बाहर जाकर पूजा करना संभव नहीं हो, क्योंकि वट सावित्री व्रत के दिन हिन्दू धर्म के पवित्र पेड़ बरगद के या पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है। बिना बरगद के या फिर पीपल के पेड़ की पूजा किए व्रत अधूरा रहता है। इसलिए ऐसे में लोग यह सोचकर परेशान होंगे कि अगर हमें बरगद का पेड़ ना मिले तो हम किस तरह से आज की पूजा कर सकते हैं। दोस्तों, इस तरह के सभी सवालों के जवाब आज आपको मिलने वाले हैं। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन रखा जाता है। इस दिन और भी बहुत से खास संयोग पढ़ रहे है।
पहले जान लेते हैं वट सावित्री व्रत की तिथि और पूजा के मुहूर्त के बारे में, उसके बाद बताते है, कि इस दिन पूजन सामग्री में क्या क्या चीजें आवश्यक होती है, और पूजा किस तरह से करनी चाहिए।
वट सावित्री पूजा 2021 में कब है?
वट सावित्री व्रत जेष्ठ मास की अमावस्या के दिन रखा जाता है इसलिए 10 जून गुरुवार के दिन वट सावित्री व्रत है, और अमावस्या तिथि प्रारम्भ हो रही है। 9 जून 2021 को दोपहर 1:58 पर और 10 जून की शाम 4:22 पर यह तिथि समाप्त होगी।
वट सावित्री का व्रत क्यों रखा जाता है
दोस्तों हमारे हिन्दू धर्म में पति की लंबी उम्र के लिए बहुत सारे व्रत रखे जाते हैं और उन्हीं में से एक सबसे प्रमुख व्रत है वट सावित्री व्रत। कहते हैं कि इसी दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान् का जीवन दोबारा मांग लिया था।
वट सावित्री व्रत का महत्व
इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करती है। इस व्रत को करने से पति को आने वाली परेशानी और मुसीबतो से रक्षा की जा सकती है।
वट सावित्री व्रत की कथा क्या है?
एक कथा अनुसार एक बार एक अश्वपति नाम के राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी ,राजा ने संतान प्राप्ति हेतु अनेक यज्ञ करवाए और परिणाम स्वरुप राजा को एक सुंदर और तेजस्वी कन्या का जन्म हुआ।
राजा ने पुत्री का नाम सावित्री रखा ,सावित्री बड़ी हुई। और फिर राजा ने उसे योग्य वर ढूंढने को कहा। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए।
उसके अनेक जगहों पर यात्रा आरम्भ की ,अनेक तीर्थ स्थलों पर भी विचरण किया। फिर सावित्री को एक योग्य वर मिला ,वह वन में रहने वाला वनवासी था, जिसका नाम सत्यवान था।
वह बड़ा गुणी और ज्ञानी था। राजा के पास आकर सावित्री ने कहा की में सत्यवान से विवाह करना चाहूंगी।
पर उस वक्त देवर्षि नारद वहा पे मौजूद थे। और उन्होंने राजा से कहा – जिस सत्यवान की सावित्री बात कर रही है, वह अल्प आयु वाला है ,और उसकी मृत्यु में केवल एक वर्ष ही शेष बचा है।
इसलिए अगर आप इनसे विवाह ना ही करे तो अच्छा होगा। पिता ने भी यह सलाह दी की तुम कोई और योग्य वर ढूढो। पर सावित्री ने निष्चय कर लिया था, की वह उसीसे विवाह करेगी।
तब फिर सावित्री की बात का मान रखते हुवे ,सावित्री का विवाह उसके पिता ने बड़े धूम धाम से करवाया।
पर होनी को कौन टाल सकता था।
विवाह के एक वर्ष पश्चात् एक वट वृक्ष के निचे सत्यवान की मृत्यु हो गई,और सावित्री उस वट वृक्ष के निचे अपने पति के सर को गोद में रखकर रोने लगी। उसे लेने स्वयं यमराज आ पहुंचे।
तब सावित्री ने कहा – यमराज आप स्वयं आ गए ,आपने अपने दूतो को नहीं भेजा। तब यमराज ने कहा – सत्यवान बेहद गुणी और शुद्ध आत्मा है। इसको लेजाने के लिए मेरे दूत योग्य नहीं है।
इसीलिए मै स्वयं आया हु। तब यमराज सत्यवान को लेकर निकल पड़े। और फिर सावित्री भी उनके पीछे पीछे जाने लगी।
यमराज ने देखा सावित्री उसके पीछे आ रही है, तब यमराज ने पूछा – तुम मेरे पीछे मत आओ। पर सावित्री नहीं मानी और वापस पीछे चल दी।
यमराज ने वापस देखा और कहा ठीक तुम नहीं मानोगी ,चलो कोई वर मांगलो ,तब सावित्री ने अपने अंध सास ,ससुर की आँखे मांग ली ,यमराज ने तथास्तु कहा।
फिर भी सावित्री उनके पीछे-पीछे आ रही थी, तब यमराज ने कहा – तुम क्यों अभी भी मेरे पीछे आ रही हो ,तब सावित्री ने कहा – मेरे पति जहा जायेंगे ,में भी वही उनके पीछे जाउंगी ,तब यमराज ने उसके पति धर्म से प्रसन्न होकर, एक और वर मांगने को कहा – फिर सावित्री ने सत्यवान से 100 पुत्रवती होने का आशीर्वाद मांग लिया।
यमराज ने तथास्तु कहा। फिर यमराज चल दिए। यमराज ने फिर देखा के सावित्री उसके पीछे आ रही है। तब यमराज क्रोधित हुवे और बोले अब क्यों मेरे पीछे आ रही हो।
तब सावित्री ने कहा – प्रभु आपने ही तो मुझे सत्यवान से 100 पुत्र का वरदान दिया है। बिना सत्यवान के 100 पुत्र कैसे संभव है।
तब यमराज ने उसकी पतिव्रत धर्म पर कायम देख ,यमराज प्रसन्न हुवे और उसके पति के प्राणो को लौटा दिया। जब सावित्री ,सत्यवान को लेकर वापस घर पहुंची तब उसके सास ,ससुर की आँखों की रौशनी भी वापस आ चुकी थी।
इस प्रकार सावित्री ने पति व्रत का पालन करके यमराज को भी अपने पति के प्राणो को लौटाने पे विवश कर दिया था। इसीलिए वट सावित्री व्रत का इतना महत्व बताया गया है।
वट सावित्री की पूजा कैसे करते हैं?
पूजन सामग्री में आपको कौन कौन सी चीजें जरूर शामिल करनी चाहिए, इस बारे में जान लेते हैं। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है।
जो भी आपकी पूजा है, उसे आपको बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ही संपन्न करनी होती है। पीपल के पेड़ में त्रिदेवों का यानी की ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है।
इसलिए आज के दिन बरगद के पेड़ की पूजा विशेष रूप से की जाती है। दोस्तों इस व्रत को जो भी सुहागिन महिला करती है, उसे आज के दिन पूरी तरह से 16 श्रृंगार करना चाहिए।
यानी कि एक दुल्हन की तरह सजना चाहिए और उसके बाद आपको बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करनी है। आपको अपने घर से ही पूजन सामग्री एक बांस की टोकरी में या फिर किसी थाली में सजाकर घर से लेकर जानी होती है।
सबसे जरूरी चीज़ होती है पूजा में गणेश जी की पूजा। इसलिए आप आज के दिन अपने घर से ही गणेशजी की कोई भी मूर्ति लेकर जाएं।
अगर आपके पास गणेश जी की मूर्ति नहीं है तब आप एक सुपारी में रक्षा सूत्र या जिसे मौली बोलते है उससे बांध लीजिए और उसको अपने साथ पूजन सामग्री के साथ शामिल करके बरगद के पेड़ के नीचे जाए। वहाँ पर एक आसन बिछा लीजिए।
पूजा करने वाली जगह को साफ सुथरा कर लीजिए और उसके बाद आप अपनी पूजा सबसे पहले गणपति की पूजा करके प्रारंभ करिए।
वट सावित्री पूजा में क्या क्या सामान लगता है?
जो जरूरी चीजें आज के व्रत में आपको चाहिए वो है, काले भीगे चने और इसके साथ ही बास का एक पंखा और बरगद का पेड़, इसके साथ ही आज के दिन बरगद बनाए जाते हैं।
जिससे आपको आटा और उसमें गुड़ मिलाकर छोटी गोलियां बना लेनी होती है। आटे की उसके बाद आप इसे घी में फ्राई करके इनकी छोटी छोटी गोलियां आप कर लीजिए।
उसके बाद जब आपको व्रत खोलना होता है, तब आप सबसे पहले तो इन्हीं चीजों का आपको भोग भी लगाना होता है, और व्रत खोलते समय इन्हीं बरगद को आप खाकर अपना व्रत खोल सकते हैं।
वट सावित्री व्रत में सबसे पहले बरगद के पेड़ में जो लगने वाली कोपलें होती हैं, जिन्हें बरगद के फूल भी बोलते हैं उन्हें खाकर ही अपना व्रत खोलना चाहिए।
लेकिन अगर किसी वजह से आपके लिए इन फलों को लाना घर पर संभव नहीं है तब आप ऐसी स्थिती में घर पर आटे और गुड़ को मिलाकर बरगद के फल बना सकती है।
बांस का पंखा जरूर रखना चाहिए। अगर आपके पास बांस का पंखा नहीं है, तब आप अपने घर में ही कागज से एक पेपर फैन बना सकती है, जिसे आप अपनी पूजा में सम्मिलित करके उसकी पूजा कर सकती है।
इस पंखे से बरगद के पेड़ की हवा की जाती है। कहा जाता है कि बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान् की हवा की थी।
और उसके बाद यमराज प्रकट हुए थे उसके बाद ही उन्होंने यमराज से अपने पति का जीवन पुनः प्राप्त किया था। पूजा के लिए सत्यवान् सावित्री की मूर्ति आपको चाहिए।
अगर आपके पास मूर्तियां नहीं है, तब आप घर पर ही मिट्टी से मूर्तियां बना लीजिए। दो छोटी छोटी मूर्तियां बनाकर उनका शृंगार कर लीजिए।
उसके बाद आपको रोली, कुमकुम, अक्षत इसके साथ ही सबसे जरूरी चीज़ एक और होती हैं वो होता है कच्चा सूत, जब आप बरगद के पेड़ की पूजा करती है तब, आपको परिक्रमा करते हुए यह कच्चा सूत पीपल या बरगद के पेड़ के चारों ओर लपेटना होता है।
कम से कम सात परिक्रमा आपको करनी होती है। कोई भी मौसमी फल लेने के साथ ही एक लौटे में जल रखकर आपको अपने घर से ही लेकर जाना होता है।
इसके बाद पीपल के पेड़ के नीचे आसन पर बैठकर आपको पूजा करनी चाहिए। दोस्तों अगर किसी वजह से आप पीपल के पेड़ की या बरगद के पेड़ की पूजा नहीं कर पाती है तब आप अपने घर के किसी भी सदस्य को भेजकर बरगद या पीपल के पेड़ की टहनियां मंगवा लीजिए। और उसके बाद अपने घर पर ही उसकी पूजा आप कर सकते हैं।
एक गमले में आप इन टहनियों को खड़ा कर दीजिए उसके बाद आप वहाँ पर बैठकर अपनी पूजा संपन्न कर सकती है।
बरगद या पीपल के पेड़ में रोली, कुमकुम, अक्षत, पान का पत्ता और मौसमी फल अर्पित करने के बाद आप परिक्रमा कीजिए। घी का दिया जलाने के बाद आरती कीजिये।
परिक्रमा करते समय कच्चा सूत लपेट ये हर परिक्रमा के साथ एक काला चना आप पीपल के पेड़ की जड़ में डाल दीजिए और फिर दोस्तों ज इस जगह भी आप पूजा कर रहे हैं।
वहाँ अगर आसपास सुहागिन महिलाएं हैं तब आप उन सभी को सिंदूर भी लगाइए, उन्हें तिलक करिए। ऐसा करने से एक दूसरे को आशीर्वाद मिलता है।
जब भी आपको व्रत करते हैं, व्रत का संकल्प सबसे पहले आपको लेना चाहिए। यानी की सुबह स्नान करने के साथ ही अपने हाथ में अक्षत, फूल या फिर जल लेकर आपको अपने व्रत का संकल्प लेना चाहिए और व्रत के नियमों का पालन भी करना चाहिए।
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