श्री गणेशजी जन्म से जुडी 4 पौराणिक कथाए

गणेशजी जन्म
गणेशजी जन्म

श्री गणेशजी जन्म कथाए

हिंदू धर्म में कई भगवान या देवी-देवताओं के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है। इन देवी-देवताओं को विशिष्ट उद्देश्यों के लिए प्रकट करते हुए, गणेशजी जन्म से जुडी कई कथाए हमारे पुराणों में बताई गई है। तो चलिए श्री गणेशजी जन्म से जुडी 4 पौराणिक कथाए का अध्ययन करते है।

1. शिव पुराण के अनुसार एक बार माता पारवती स्नान करने से पहले हल्दी लगा रही थी ,तब हल्दी निकालते वक्त उन्होंने उसका एक पुतला बना दिया ,पुतले में उन्होंने प्राण दाल दिए और कहा में स्नान करने जा रही हु, तुम किसीको भी अंदर मत आने देना।

संजोग से भगवन शिव वहा आ पहुंचे ,गणेश ने उनको रुक ने लो कहा ,शिव उनको नहीं जानते थे के वह कौन है। और न गणेश उनको जानते थे ,शिव ने कहा मुझे पारवती से अभी मिलना है।

दोनों के बिच बहुत विवाद हुवा पर गणेश नहीं माने ,तब शिव को क्रोध आया और बालक का सर काट दिया। जब पारवती जी को पता चला तो वो विलाप करने लगी और कहने लगी के मेरे पुत्र का वध कर डाला, तब शिवजी ने कहा यह तुम्हारा पुत्र कैसे हो सकता है।

तब माता पारवती ने उनको पूरा वृतांत बताया। तब शिवजी ने कहा कोई बात नहीं में इसमें प्राण दाल देता हु ,पर बिना सर के प्राण नहीं दाल सकता तब उन्होंने गरुड़ को कहा के तुम उत्तर में जाओ और ऐसे बच्चे का सर ले आओ जिनकी माता अपने बच्चे को पीठ दिखाए सो रही हो ,फिर गरुड़जी निकल पड़े ,गरुड़जी ने बहुत तलाश की पर कोई ऐसी माता नहीं दिखी जो अपने बच्चे को पीठ दिखाए बैठी हो।

तब उनको एक हथिनी दिखी ,हाथी अक्सर बैठने पर उसके आकर की वजह से वो कईबार अपने बच्चे को पीठ दिखाकर ही सोती है। इसीलिए गरुड़जी उसके बच्चेका सर ले आये।

फिर गणेश जी को वह सीर लगाया ,तब पार्वतीजी ने बोला – हाथी के सर वाले बच्चे को कौन पसंद करेगा। तब महादेव ने उसमे प्राण डालने के साथ साथ यह भी वरदान दिया के यह बच्चा बुद्धिमान होगा और  किसीभी अनुष्ठान के पहले पूजा जायेगा ,तभी अनुष्ठान किसी विघ्न के बिना संपूर्ण हो पायेगा। तभी से भगवन गणेश की सर्वप्रथम पूजा अर्चना की जाती है।

2. स्कंद पुराण अनुसार शिवजी ने माता पारवती को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। तब गणेशजी ने अबुर्द पर्वत पर जन्म लिया था। यह पर्वत आज माउंट अबू के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत को अर्ध काशी भी कहते है। गणेशजी जन्म के बाद जब ऋषि और देवता गण उस पर्वत की प्रदक्षिणा करने आये थे। तब उन्होंने गोबर से गणेशजी की मूर्ति भी स्थापित की थी ,जहा आज यह मंदिर सिद्धिगणेश के नाम से भी जाना जाता है।

3. गणेश चालीसा के अनुसार माता पारवती ने पुत्र प्राप्ति हेतु अति कठोर तप किया। तब स्वयं गणेशजी प्रगट हुवे ,और उन्होंने वरदान दिया के बिना गर्भ के ही आपका पुत्र होगा और तुरंत उनके पालनेमें एक पुत्र आ गया।

यह पुत्र इतना तेजस्वी था के उनको देखने के लिए सभी देवता ,किन्नर ,राक्षश ,ऋषिमुनि ,गंधर्व सभी लोग पहुंचे। सभी ने उनका वखान किया।

पर शनिदेव की दृस्टि अच्छी नहीं मानी जाती ,इसीलिए शनिदेव बालक की और द्रस्टी डालनेसे बचते रहे। तब माँ पारवती ने देखा के शनिदेव खुश नहीं है। और वो बालक से दूर रह रहे थे।

माँ पारवती को बुरा लगा ,तब तुरंत उनका मान रखने के लिए वो बालक को देखने पहुंचे ,जैसे ही उनकी द्रस्टी बालक पर पड़ी तो बालक का सिर आकाश में उड़ गया। माता पारवती विलाप करने लगी।

तब तुरंत ही भगवन शिव ने गरुड़जी को किसीका सर लाने को कहा। गरुड़जी एक हाथी का सर ले आये और भगवान् शिव ने उसमे प्राण दाल दिए। 

4. वराह पुराण में गणेशजी जन्म की एक अलग कथा मिलती है। एक बार भगवन शिव गणेश जी को गणेशजी जन्म के लिए पंचतत्वों से उनका सर्जन कर रहे थे ,गणेशजी इतने रूपवान होने वाले थे के इनका पता देवताओ को लगा और समस्त देवताओ को लगा के यह तो सबके आकर्षण न बन जाये ,अगर ऐसा होता तो देवताओ को लगा के उनका वर्चस्व कम हो जायेगा।  तब भगवन शिव को पता चला तो उन्होंने गणेशजी का सिर हाथी का और पेट बहार की और कर दिया।

विघ्नहर्ता गणेश जी हमारे हिन्दू धर्म के प्रथम पूजनीय देवता है। गणेश जी की पत्निया रिद्धि और सिद्धि है। शुभ और लाभ उनके पुत्र है।

इस प्रकार हमारे पुराणों में गणेशजी जन्म से जुडी अलग-अलग कहानिया मिलती है। आशा करते है आपको यह कथाए पसंद आयी होगी ,यहाँ तक बने रहने के लिए आपका बहुत-बहुत  धन्यवाद।

|| जय श्री गणेश ||


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