विश्वकर्मा पूजा 2023 में कब है:जाने तिथि, पूजा विधि, महत्त्व

विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर माना जाता है। माना जाता है की प्राचीन काल की सभी राजधानीओ का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। कहते हे, की स्वर्गलोक , द्धारिका नगरी ,सोने की लंका और हस्तिनापुर का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। इसीलिए विश्वकर्मा पूजा के दिन उध्योगो मशीनों और फ़ैक्टरिओ की पूजा की जाती है। कहा जाता हे, की व्यापारिओं के लिए इस पूजा का बहोत महत्व है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से  व्यापार में वृद्धि होती है।

विश्वकर्मा पूजा 2023 में कब हैजाने तिथि, पूजा विधि, महत्त्व
विश्वकर्मा पूजा 2023 में कब हैजाने तिथि, पूजा विधि, महत्त्व

विश्वकर्मा पूजा 2023 में कब है:जाने तिथि, पूजा विधि, महत्त्व

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, विश्वकर्मा पूजा प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के आखिरी दिन मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में, यह आमतौर पर सितंबर में पड़ता है। वर्ष 2023 में, विश्वकर्मा पूजा रविवार, 17 सितंबर, 2023 को मनाई जाएगी। विश्वकर्मा पूजा संक्रांति (सूर्य का एक नई राशि में संक्रमण) दोपहर 1:43 बजे होगी।

विश्वकर्मा पूजा सामग्री और विधि

भगवान विश्वकर्मा की पूजा के लिए अक्षत ,धुप , अगरबत्ती ,दही रोली ,सुपारी ,रक्षासूत्र ,मिठाई , फलहार की आवश्यकता होती है। फैक्टरी ,दुकान आदी जगहों पर पूजा के स्थान की व्यवस्था करे। 

इसके बाद स्नान करके पूजा के स्थान पर बैठना चाहिए। और कलश रखने की जगह पर अष्ट दल की रंगोली बनाकर विधि विधान से स्वयं या अपने पंडित जी के माध्यम से पूजा करे।

भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते समय ‘ॐ आधार शत्कनमः और ॐ कुमयि नमः ॐ अनन्तम नमः  पृथ्विये नमः।  का जाप करे। और फीर कथा पढ़े।

पौराणिक ज्ञान के अनुसार इस समय ब्रह्माण्ड की रचना भगवान विश्वकर्मा के हाथो में है। कहा जाता है की भगवान विश्वकर्मा के हाथो से ही इस धरती , जल और आकाश की रचना की गई है।

कहा जाता हे, की नारायण जी ने सबसे पहले ब्रह्माजी और विश्वकर्मा की रचना की थी। पौराणिक समय के अश्त्र, शष्त्र विश्वकर्मा के द्वारा ही निर्मित है।

व्रज का निर्माण भी उन्होंने ही किया था। एक बार भगवान शिव को माँ पार्वती जी के लिए महल बनवाना था।  तब उन्होंने यह काम भगवान विश्वकर्मा को ही दिया था।

तब विश्वकर्माजी ने सोने का महल बना दिया उसके बाद भगवान शिव ने उस महल की पूजा के लिए रावण को बुलाया ,तब रावण उस महल को देख मंत्र मुग्ध हो गया और उसने दक्षिणा में शिवजी से महल को ही मांग लिया। 

भगवान शिव ने उसे महल दे दिया और कैलाश चले गए। इस प्रकार उनकी रचनाओं की चर्चा से उन्हें महान शिल्पकार के नाम से जाना जाता है।


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