गोकर्ण में स्थित 6 प्राचीन मंदिर | Gokarna Temple History in Hindi
गोकर्ण में स्थित 6 प्राचीन मंदिर | Gokarna Temple History in Hindi
गोकर्ण का अर्थ होता है पवित्र गाय के कान। गोकर्ण एक धार्मिक एवं पवित्र क्षेत्र है। यह गंगावली तथा अग्निशिनी के बीच में पड़ता है। इसके बारे में इतिहास की कई कथाएं प्रचलित है, इसीलिए यह बहुत महत्व पूर्ण क्षेत्र माना गया है। यह कर्नाटक में एक हिंदू तीर्थ शहर है। यहाँ पर प्राचीन समुद्र तट के दृश्य देखे जाते है, जो की बहुत लुभावने दृश्य है। यहां पर भगवान शिव की बहुत बड़ी प्रतिष्ठा है। यह भगवान शिव और भगवान विष्णु का शहर है।
1. महाबलेश्वर मंदिर – Mahabaleshwar Temple Gokarna – Gokarna Shiva Temple
यहां पर मौजूद भगवान शिव का मंदिर महाबलेश्वर के नाम से जाना जाता है। महाबलेश्वर में भगवान शिव का 6 फिट लंबा शिवलिंग है। ये आत्मलिंग के रूप में प्रचलित है। यह मंदिर सफल ग्रेनाइट के उपयोग से बनाया गया है। भगवान शिव की 1500 साल पुरानी मूर्ति इसमें स्थापित की गई है। महाभारत और रामायण तथा अन्य प्राचीनकाल की कथाओं में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है। यह मंदिर काशी के समान ही महत्व पूर्ण है। इस मंदिर में आने से पहले गणपति जी का मंदिर है। मान्यता है की मंदिर में आने से पहले कारवार बीच में डुबकी लगाते सबसे पहले महागणपति जी के मंदिर जाना चाहिए और फिर महाबलेश्वर मंदिर में प्रवेश करना चाहिए। गोकर्ण जाने वाले सभी यात्री के लिए यह मंदिर प्रचलित है।
2. भद्रकाली मंदिर – Gokarna Bhadrakali Temple
भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु ने तीनों लोक पर विजय प्राप्त करने वाले अत्यंत शक्तिमान राक्षस वैत्रासुर को हराने के लिए दुर्गा नामक महिला योद्धा की रचना की थी। इसी दुर्गा नामक देवी की स्थापना गोकर्ण शहर की रक्षा के लिए देवताओं द्वारा को गई थी और इसका नाम भद्रकाली मंदिर रखा गया था। यह मंदिर भगवान शिव के मंदिर से थोड़ी ही और स्थापित किया गया है।
3. महालासा मंदिर – Gokarna Mahalasa Temple
यह मंदिर सिद्धि विनायक के रूप में स्थित है। इसे 150 साल पहले स्थापित किया गया था। मुख्य बस स्टेशन से 10 किमी की दूरी पे यह मंदिर स्थित है। यहां पर हिंदू धर्म के अनेक त्योहार मनाए जाते है। यहां पर गणेश चतुर्थी और श्रवण संकष्टी के त्योहारों के दौरान हजारों की भीड़ जमा होती है।
4. सोमेश्वर मंदिर – Gokarna Someshwar Temple
गोकर्ण में यह एक शिव मंदिर है। इसे 14 शताब्दी में स्थित किया गया था। यह मंदिर चोलो द्वारा स्थापित किया गया था और चालुक्य राजा ओ ने इसे विस्तार में बढ़ाया था। इसकी रचना विशाल स्तंभों वाली इमारत के साथ की हुई है और इसमें गर्भगृह और कल्याण मंडप भी बनाया गया है। उसमे नक्षी काम भिंकिया गया है इसीलिए इसे राष्ट्रीय खजाने के रूप में ASI के द्वारा प्रचलित किया है।
5. उमा महेश्वर मंदिर – Gokarna Uma Maheshwar Temple
यह मंदिर भगवान शिव और पत्नी पार्वती को समर्पित है। गोकर्ण में शतश्रुंग पर्वत पर स्थित यह मंदिर कुडले समुद्र तट और ओम समुद्र तट के बीच स्थापित है। यह काफी लोकप्रिय मंदिर है। पहाड़ की चोटी पर 15 मिनिट की पैदल यात्रा करने से इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
6. मल्लिका अर्जुन मंदिर – Gokarna Mallikarjuna Temple
यह मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है। इसे वेंकटरण मंदिर भी कहा जाता है। उसमे एक पवित्र गर्भ गृह है, जिसमे भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस मंदिर में गैर मूल प्रवासी नही जा सकते, परंतु बाहर से इसे देख सकते है। गोकर्ण में यह एक भव्य मंदिर है, जिसकी रचना बहुत सुंदर की गई है।
गोकर्ण एक तीर्थ स्थल है। यहाँ महादेव का वास है। यहां भगवान शिव के चमत्कारों की अनेक कथाएं प्रचलित है। माना जाता है, की यहां पर देवता भी महादेव का पूजन करने आते है। इस स्थान के लिए मान्यता है, की यहाँ पर को लोग 3 दिन तक उपवास करके भगवान शिव कि पूजा करते ही उसे 10 अश्वमेघ यज्ञ के जितना पुण्य मिल जाता है। भगवान शिव गाय के कान से प्रकट हुए थे, इसीलिए इसका नाम गोकर्ण पड़ा। इससे जुडी एक अतिप्रचलित कथा है।
गोकर्ण की कथा
लंका का राजा रावण भगवान शिव का परम भक्त था। उसने महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उसकी कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने रावण को वर मांगने को कहा।
तब रावण ने उनसे आत्मलिंग की मांग की, शिवजी ने उसे अपना आत्मलिंग दे दिया, परंतु बताया कि वो इसे जहा जमीन पर रखेगा, आत्मलिंग वहा स्थापित हो जायेगा।
रावण इसे लेकर लंका की और निकल गया। इस शिवलिंग कि पूजा से रावण और भी शक्तिशाली हो सकता था। इस बात की नारद मुनि को पता चला, तब वो गणेश जी ने पास सहायता मांगने गए।
गणेश जी को एक युक्ति सूजी। रावण लंका जा रहा था, तब संध्या हो गई और रावण संध्या पूजा करने के लिए शिवलिंग के कारण धर्मसंकट में पड़ गया।
तब वहा गणेश जी ब्राह्मण का स्वरूप लेकर आए और रावण ने उन्हें वह शिवलिंग थोड़ी देर के लिए दिया और पूजा करने चला गया। गणेश जी ने ब्राह्मण स्वरूप में रावण सें कह दिया था, की अगर उसे ज्यादा समय लगा, तो वो शिवलिंग को नीचे रख देंगे और चला जायेगा।
रावण जैसे ही पूजा करने गया गणेश जी ने उसे नीचे रख दिया और शिवलिंग वही स्थापित हो गया। रावण जब वापस आया, तो उसने शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की परंतु वो नहीं उठा पाया। तब से ही गोकर्ण को भगवान शिव का स्थान माना गया है।
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