हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने गए
हनुमान जी संजीवनी बूटी
राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। रामायण प्रेमियों को यह ज्ञात तो होगा ही। हनुमान ने इसमें कितने राक्षसों का वध कर डाला था।
समय-समय पर उन्होंने राम, लक्ष्मण, विभीषण, जामवंत – सभी को युद्ध में मदद की। मेघनाद से युद्ध करते समय लक्ष्मण को एक भयानक शक्ति का प्रहार सहना पड़ा। वे युद्ध के मैदान में मूर्छित हो गए।
मेघनाद और उसके कई सैनिकों ने लक्ष्मण को ले जाने की कोशिश की। लेकिन वे सफल नहीं हुए। लक्ष्मण को जमीन से नहीं उठाया जा सका।
हनुमान उन्हें आसानी से उठाकर राम के पास ले गए। लक्ष्मण को मूर्छित की अवस्था में देखकर, राम विलाप करने लगे। जामवंत ने कहा – कि लंका में रहने वाले सुषेन नाम का एक वैद्य है, अगर वह इस समय यहां आ जाए, तो लक्ष्मण स्वस्थ हो सकते हैं।
हनुमान लंका के लिए रवाना हुए। उनको लगा कि कोई दुश्मन पक्ष का वैद्य शायद रात को मेरे साथ ना भी आये। तो, चलो बस उसके घर के साथ ही उन्हें ले चलें। उन्होंने बस यही किया।
सुषेन ने राम की सेना में पहुचकर लक्ष्मण की जांच की और कहा कि अगर आज रात तक, द्रोणाचल से औषधि आ जाए, तो लक्ष्मण जीवित रह सकते हैं।
चले हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने
हनुमान भगवान राम नाम स्मरण करते हुए, हनुमान जी संजीवनी बूटी के लिए द्रोणाचल के लिए रवाना हो गए। खबर रावण तक पहुंची। उसने कालनेमी नाम के एक दैत्य के साथ एक चाल चली।
ताकि हनुमान रस्ते में अधिक समय बिता सकें और वे कल सूर्योदय से पहले यहां न पहुंच सकें। कालनेमी ने ऋषि का वेश बनाकर हनुमान को बहकाने की कोशिश की, लेकिन मायापति के दूत पर किसकी माया चल सके? संयोग से हनुमान को पता चल गया और वे उस नकली मुनि को मृत्यु की गुरुदक्षिणा देकर आगे बढ़ गए।
हनुमान द्रोणाचल पहुंचे। रात हो गई। वे जड़ी-बूटियों की पहचान नहीं कर सके। शायद जड़ी बूटियों ने खुद को छुपा लिया। हनुमान देरी करना नहीं जानते थे। रात को उन्हें लंका पहुंचना था।
हनुमान भरत मिलाप
उन्होंने द्रोणाचल को ही उठा लिया और ले चले। वापस जाते समय अयोध्या रास्ते में आई थी। भरत ने इसे दूर से देखा और अनुमान लगाया कि यह एक राक्षस है।
उसने हनुमानजी पर तीर चलाया। जैसे ही बाण चलाया गया, “राम-राम” कहकर हनुमान बेहोश हो कर गिर पड़े। उनके मुख से “राम राम” सुनकर भरत उनके पास दौड़े और उन्हें जगाने की बहुत कोशिश की।
अंत में भरते ने कहा – “यदि मेरे मन में राम की सच्ची भक्ति है, तो यह वानर अभी जीवित होगा।” हनुमान उठकर बैठ गए। हनुमान ने सारी कथाएं सुनाईं।
भरत ने पश्चाताप किया और खुद की कड़ी निंदा की और हनुमान को तीर पर बैठने के लिए कहा, की आप इस पर बैठ जाये आप शीघ्र ही लंका पहुंच जायेंगे।
हनुमान ने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया और स्वयं द्रोणाचल को लंका ले गए। उस समय श्रीराम अत्यंत बेचैन हो रहे थे। हनुमान के आते ही उनका हृदय प्रफुल्लित हो उठा।
सुषेन ने उपचार किया और लक्ष्मण ठीक हो गए। चारों ओर हनुमान की कीर्ति फैलने लगी। फिर वापस से विनयपूर्वक हनुमान ने सुषेन को उसके स्थान पर घर के साथ छोड़ दिया।
हनुमान संजीवनी बूटी के समय कौन सा पर्वत उठाकर लंका लाए थे?
लंका के वैद सुषेन के कहे अनुसार हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने हनुमानजी हिमालय में द्रोणाचल पर्वत पर गए थे। परन्तु हनुमानजी संजीवनी बूटी पहचान नहीं पाए और फिर उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया था।
हनुमान जी संजीवनी कैसे लाए?
हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने पवन वेग से आकाश मार्ग से गए थे।
संजीवनी बूटी के समय लंका से लाए गए वेद का क्या नाम था?
हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने से पहले जिस वैद ने संजीवनी लेन के लिए भेजा था ,उसका नाम वैद सुषेन था।
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