हनुमान जी की अनसुनी कहानियां | 7 Stories Of Hanuman
हनुमान जी की अनसुनी कहानियां – 7 Stories Of Hanuman
हनुमानजी कलयुग के सबसे लोकप्रिय देव में से एक है। और पुरे भारत में पूजे जाते है। हनुमानजी को शक्तिशाली और कर्तव्य निष्ठ बताया गया है। महाकाव्य रामायण में भी उनका अपने प्रभु श्री राम के प्रति सेवा और भक्ति के प्रतिक के रूप में चित्रित किया गया है। हनुमानजी को भगवन शिव का अंश माना गया है। और वायु देव उनके पिता और अंजना उनकी माता के रूप में बताई गई है। कहा जाता है अंजना एक अप्सरा थी एक भूल वश ऋषि दुर्वासा ने उनको वानर बनने का श्राप दिया था। अंजना वानर राज गिरज की पुत्री बनी, और उनका विवाह सुमेरु पर्वत के वानर राज केसरी से हुवा। इसीलिए हनुमानजी को केसरी नंदन भी कहा जाता है।
1. हनुमानजी के जन्म की कहानी
कहा जाता है की राजा दशरथ ने अपने पुत्रो की प्राप्ति के लिए यग्न का आयोजन किया। और फिर यग्न मेसे एक फल निकला उस फल को खाने से पुत्र की प्राप्ति होती ,तब तीनो रानियों ने उसमेसे फल खाया और बाकि बचा हुवा फल एक पक्षी छीन के ले गया तब अंजना एक पर्वत पे टहलने निकली और पुत्र प्राप्ति की लालसा कर रही थी।
तब वह पक्षी उस पर्वत पर फल फेक के चला गया। तब वायु देव ने उस फल को उठाकर अंजना को देदिया और फिर शिवजी प्रगट हुवे और उन्होंने अंजना को निर्देश दिया के वह इस फल का उपभोग करे।
ऐसा करके उन्होंने हनुमान की कल्पना की। वही बचा हुवा फल कैकई के हाथ से पक्षी ने छिना था। अंजना ने वही फल का उपभोग करके हनुमानजी का जन्म हुवा था ,इसीलिए श्री राम हनुमानजी को भरत के समान भाई कहते थे।
2. जब हनुमानजी ने सूर्य को निगलने की कोशिश की थी
एक बार हनुमानजी को भूख लगी ,उनको आस पास कुछ नहीं दिखा तो हनुमानजी ने सूरज को देखा ,हनुमानजी बाला अवस्था में थे ,उनको लगा यह एक फल ही हे ,वह सूरज को निगलने को नज़दीक जा रहे थे ,जैसे जैसे नज़दीक जा रहे थे वैसे वैसे अपना आकर भी बड़ा कर रहे थे।
राहु का ध्यान पड़ा के कोई शक्ति सूरज के नज़दीक आ रही है। उन्होंने तुरंत इंद्र देव से सहायता मांगी ,तब इंद्र देव ने हनुमानजी को रुक ने को कहा ,हनुमानजी कहा मानने वाले थे ,तब इंद्र ने वज्र से हनुमानजी पर प्रहार कर दिया।
हनुमानजी मूर्छित हो कर निचे गिर गए। यह बात हनुमानजी के पिता पवन देव को पता चली ,पवन देव क्रोधित हो उठे। उन्होंने श्रुष्टि के वायु चक्र की गति को बंध दिया।
अचानक से हवा रुक गई और जीवो का दम घुटने लगा ,देवताओ को चिंता हुई की इस प्रकार वायु के थम जाने से तीनो लोको की गति रुक जाएगी।
3. हनुमानजी की शक्तिया
संकट के समाधान के लिए सारे देवता जाकर पवन देव से इंद्र की किये की क्षमा मांगने लगे। उनको शांत कर ने के लिए सभी देवताओ ने अपनी अपनी शक्तिया और वरदान देने लगे।
जैसे ब्रह्मा ने अमरता का वरदान दिया और और कहा वे अपनी इच्छा से अपनी उपस्थिति बदल सकेंगे। सूर्यदेव ने कहा कि वह अपनी ऊर्जा और चमक का एक हिस्सा देंगे और जब चाहें उन्हें वेद का ज्ञान भी सिखाएंगे।
वरुण ने कहा की वह लंबी उम्र के बावजूत वह पानी के प्रभाव से अप्रभावित रहेंगे। यम देवता ने कहा की उन्हें कभी यमयातना से डरना नहीं पड़ेगा।
विश्वकर्मा ने उन्हें वरदान दिया के उनके द्वारा बनाये गए किसी भी शस्त्र से उन्हें कभी कोई आहत नहीं होगी। कुबेर ने उनकी गदा प्रदान की और युद्ध में विजय बने रहने का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार देवताओ द्वारा दी गई शक्तिओ से हनुमाजी धन्य धन्य हुवे।
4. हनुमान को श्राप
इस प्रकार हनुमानजी थोड़े बड़े हुवे ,वह बड़े शरारती थे। वह जंगल में रहनेवाले ऋषिओ को बड़ा परेशान करते थे उनके नटखटपन से परेशान होकर एक ऋषि ने उनको श्राप दिया के वे अपनी सारी शक्तिओ को इसी क्षण भूल जाये। माता अंजनी को पता चला तो माता ने बालक की भूल का प्रश्चाताप किया और ऋषि से क्षमा मांगी तब ऋषि ने बताया की जब इसे शक्ति की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी तब उसे कोई याद दिलाएगा तब उसे अपनी सारी शक्तिओ का स्मरण हो जायेगा।
5. सीता माता की खोज
जब श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में थे, तो अपने पिता राजा दशरथ को अपनी सबसे छोटी रानी कैकेयी को दिए गए वरदान का पालन करने के लिए, तब सीता का अपहरण लंका के राक्षस-राजा रावण ने किया था। जरूरत के इस समय में हनुमानजी ने श्री राम और लक्ष्मण से मुलाकात की और उन्हें किष्किंधा के निर्वासित राजा सुग्रीव के पास ले गए । श्री राम की मदद से सुग्रीव ने अपने बड़े भाई बाली को मार डाला और किशकिंधा की गद्दी फिर से हासिल कर ली । इसके बदले में सुग्रीव ने श्री राम को सीता को खोजने में मदद का वचन दिया।
सीता को खोजने में श्री राम की सहायता करने के लिए सुग्रीव ने भालुओं और बंदरों की फौज उठाई। जब जटायु से पता चला कि रावण ने सीता का अपहरण कर लिया है, जिसका राज्य सागर के पार था तो सवाल उठ रहा था कि कौन सागर पार कर सकता है और सीता के समाचार और ठिकाने लेकर वापस आ सकता है। तब जाम्बावन, भालुओं के राजा ने हनुमान को अपनी विभिन्न शक्तियों की याद दिलाई, जिसे वह ऋषियों के श्राप के कारण भूल गए थे। तब हनुमानजी ने सागर के पार उड़ान भरी, लंका में सीता से मुलाकात की, राम की अंगूठी उन्हें दी और आश्वासन दिया कि राम अपने सैनिकों के साथ आएंगे और रावण को हराने के बाद उसे वापस ले जाएंगे । श्री राम को सीता माता का पता और हाल सुनाने वापस चल दिए।
6. हनुमान जी बूटी लेने गए
श्री राम की इच्छानुसार सागर के उस पार एक सेतु बनाया गया था और राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। लड़ाई के दौरान लक्ष्मण मूर्छित हो गए। लक्ष्मण के इलाज के लिए आवश्यक एक विशिष्ट जड़ी बूटी (संजीवनी जदीबुती) लाने के लिए एक बार फिर हनुमान ने द्रोणाचल पर्वत की ओर उड़ान भरी। पहाड़ पर पहुंचने पर जब हनुमान को विशिष्ट जड़ी-बूटी नहीं मिल पाई तो उन्होंने पूरा पर्वत उठा लिया और वापस राम के लिए उड़ान भरी। रास्ते में श्री राम के भाई भरत को लगा के कोई आकाश मार्ग से विशाल काय दैत्य जा रहा है तो उन्होंने हनुमानजी पर बाण का प्रहार किया। लेकिन जब भरत को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने हनुमानजी से क्षमा मांगी और तुरंत जड़ीबूटी लेकर वापस भेज दिया। जहा हनुमानजी ने लक्ष्मण का सफल इलाज करने वाले वैद्य सुशाइन को जड़ी-बूटी पहुंचा दी।
7. हनुमान जी की परीक्षा
युद्ध खत्म होने के बाद राम वापस अयोध्या चले गए और राजयभार सँभालने लगे ,जंगल में रहने के दौरान उनकी मदद करने वाले हर व्यक्ति को उपयुक्त रूप से पुरस्कारित किया गया, लेकिन श्री राम ने जानबूझकर हनुमानजी को पुरस्कारित नहीं किया। इसके बाद माता सीता ने अपनी कीमती पत्थरो से जुडी माला हनुमानजी को भेट की ,हनुमानजी ने उसे ख़ुशी ख़ुशी भेट स्वीकार कर ली। जिन्होंने बड़ी कृतज्ञता के साथ स्वीकार किया। लेकिन कुछ समय बाद दरबारियों ने देखा कि हनुमानजी एक-एक करके अमूल्य पत्थरों को तोड़ रहे थे, दरबारियों ने यह हास्यास्पत कार्य का कारन पूछा। हनुमानजी ने कहा जिसमे राम नहीं हे ,वह चीज़ मेरे लिए बेकार है। (हालांकि यह इस भौतिकवादी दुनिया में अमूल्य हो सकता है।)। उनके इस जवाब से चिढ़कर दरबारियों ने उनसे पूछा कि क्या राम उनके दिल में रहते हैं? जब उन्हें सकारात्मक रूप से जवाब मिला तो उन्होंने हनुमान को इसे साबित करने के लिए कहा। हनुमान तुरंत अपने हाथों के नाखूनों से अपनी छाती चिर कर दिखाई और वहां दरबारियों ने प्रभु श्रीराम ,माता सीता और अन्य भाइयों के साथ अपने दिल में बैठे दिखाया। दरबारी इस कार्य को देखकर हैरान रह गए।
तब प्रभु श्री राम उसी वक्त अपने सिंहासन से खड़े हो गए और हनुमानजी को अपने ह्रिदय से लगा लिया। वहा बैठे सारे दरबारियों ने हनुमानजी की निस्वार्थ प्रेम और भक्ति की लोग सराहना करने लगे।
कहा जाता है की जब तक लोगो के होठो पर ‘राम’ का नाम रहेगा तब तक हनुमानजी पृथ्वी पर जीवित रहेंगे और यह भी कहा जाता है की जहा जहा कलयुग में राम कथा होती है वहा स्वयं हनुमानजी बिराजमान रहते है।
जय बजरंग बलि ,जय हनुमान
जय || श्री राम ||