सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कथा | Somnath Jyotirling Story
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी
दक्ष राजा ने अपनी तेरह बेटियों का विवाह चंद्र से किया था। पर चंद्र रोहिणी नाम की पुत्री पर अधिक मोहित होकर उनको अधिक महत्व देने लगे। दु:खी होकर अन्य बेटियाँ अपने पिता को देखने चली गईं।
जब पुत्रीओ ने पिता दक्ष के बारे में सब कुछ बताया, तो अपनी बेटियों की बात सुनकर दक्ष बहुत दुखी हुए। लेकिन फिर भी मन को शांत करते हुए, चंद्र के पास जाकर प्रेम पूर्वक समजने लगे।
लेकिन चंद्रमा प्रभावित नहीं हुआ। तो दक्ष उदास हो गए और चंद्रमा को कोसते हुए कहने लगे, हे चंद्रमा! तुमने मेरी शिक्षा की अवज्ञा की है। तो तुम क्षय रोग के रोगी हो जाओ और चंद्र क्षय रोग से दुर्बल हो गया। इसलिए हर तरफ देवताओ में चीख-पुकार मच गई।
तो देवता और ऋषि दुखी हो गए और ब्रह्माजी के पास गए और उनसे उपाय दिखाने का अनुरोध किया। तब ब्रह्माजी ने कहा, हे ऋषियों! यदि आप समुद्र तट पर प्रभास नामक एक उत्कृष्ट स्थान पर जाते हैं, और एक शिवलिंग की स्थापना करते हैं, और शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं, तो वह इस रोग से मुक्त हो जाएगा।
ब्रह्माजी के अनुसार, चंद्र प्रभास तीर्थ गए और वहां ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। मृत्युंजय मंत्रों का जाप करने लगे और शिव-प्रार्थना-स्तुति करने लगे।
तब शिवजी प्रसन्न हुए और उनसे आशीर्वाद मांगने को कहा। चंद्र कहने लगे हे देवाधि देव ! आपके लिए क्या अज्ञात है? मुझे मेरे अपराध के लिए क्षमा करें।
मेरे क्षय रोग से मुक्ति दिलाइये। तब शिवाजी कहने लगे, हे चंद्र ! आपकी कलाएँ एक तरफ क्षीण होगी और दूसरी तरफ पुनर्विस्तरित होंगी।
ऐसा कहकर शिवजी वहाँ साकार हो गए और सोमेश्वर के नाम से तीनों लोकों में विख्यात हो गए। वहा चंद्रकुंड नामक देवताओं द्वारा बनाया गया एक पानी का कुंड है। इस कुंड में स्नान करने वाले सर्वेक्षक अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं, और रोगमुक्त हो जाते हैं।
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