जानिए साम दाम दंड भेद का अर्थ | Meaning of Saam Daam Dand Bhed

साम दाम दंड भेद
साम दाम दंड भेद

साम दाम दंड भेद का अर्थ : Meaning of Saam Daam Dand Bhed

कौटिल्य (चाणक्य) ने युद्ध की स्थितियों से बचने के लिए राज्य की राजनीति में समाधान लाने के लिए चार उपायों – साम, दान या दाम, दंड और भेद का उल्लेख किया था। यह नीतियां आमतौर पर तब उपयोग में लाया जाता है, जब आपको किसी समस्या का समाधान खोजने की आवश्यकता होती है। तो आइये संक्षिप्त में समझते है, साम दाम दंड भेद का अर्थ।

साम दाम दंड भेद इसका अर्थ क्या है?

साम दाम दंड भेद की निति हमारे प्राचीन समय से चली आ रही है। जी हां इसका उल्लेख मत्स्य पुराण में भगवन मत्स्य द्वारा किया गया है। आचार्य चाणक्य ने भी इन चार नीतियों पर चर्चा की है।

साम दाम दंड भेद किसकी नीति है?

आचार्य चाणक्य द्वारा इसे विस्तार से समझाया गया है। अधिकतर जितने भी शक्तिशाली लोग है, वह इन्ही नीतिओ पर चलते है। पर आप इसका उपयोग कब और कहा करते है, यह व्यक्ति की बुद्धिमानी पर आधार रखता है।

1. साम का अर्थ

साम का अर्थ होता है किसीको समजाना ,व्यक्ति अपना काम किसीको समजाके या सुझाव देके भी निकलवा सकता है। ज्यादातर इसका उपयोग झूठ बोलकर या किसी की झूठी प्रशंसा से करते है। पर जो लोग सच्चे या धर्मनिष्ठ होते है, वह इसका उपयोग सज्जनता से करते है।

2. दाम का अर्थ

दाम का अर्थ होता है, किसीको पैसे से या किसी और चीज़ की लालच देकर अपना काम करवाया जा सकता है। कई बार हमारी सारि नीतिया विफल हो जाती है ,तब दाम एक शक्तिशाली निति के रूप में इतनी सक्षम और सिद्ध हो जाती है, की व्यक्ति को और कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

3. दंड का अर्थ

दंड का अर्थ होता है, किसीको सज़ा देना। अधिकतर इस निति को अपराधिओं पर आज़माया जाता है। जिससे वह अपना भेद या गुप्तनीति बता सके। हमारे आज के सिपाईयों द्वारा अधिकतर इस निति का उपयोग किया जाता है। इसका तब ही उपयोग किया जाना चाहिए ,जब कोई उपाय ना हो।

4. भेद का अर्थ

भेद का अर्थ होता है, की किसी का रहस्य या भेद जानना ,कई बार हम किसीकी गुप्त जानकारी का भेद जानकर भी अपना काम निकलवा सकते है। जैसे व्यापार में और राष्ट्रहित में इस भेद निति का उपयोग अधिकतर किया जाता है। हमारे प्राचीन राजाओ द्वारा भी इसका युद्ध नीति के लिए अधिक उपयोग किया जाता रहा है।

इस प्रकार साम दाम दंड भेद अधिकतर कामयाब लोग यह नीतियों पर चल कर अपना काम निकलवाया करते है। जिससे हमे भी यह नीतिओ पे चलने की आचार्य चाणक्य द्वारा शिक्षा मिलती है। यह नीतिया वैसे तो कठोर दिखती है। पर हमे इन नीतियों का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए। इसे हमे सहजता से मर्यादा के साथ इसका इस्तेमाल करना चाहिए। जिससे एक अच्छे कार्य और अच्छे समाज का निर्माण हो सके।

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