रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है? जगन्नाथ रथ यात्रा 2022
रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है? जगन्नाथ रथ यात्रा 2022
भगवान ने जहाँ हमे रिश्तों, नातों और मर्यादाओं के बंधन दिए हैं, वहीं मुक्ति के रास्ते भी दिखाए है। ये रास्ते सातवें आसमान की ऊंचाइयों से नहीं, यही इसी धरती से होकर गुजरते हैं। कहते हैं मानव जीवन में जो सबसे बड़ा पुण्य हासिल किया जा सकता है, वह चारों धाम की यात्रा का पुण्य है, इससे बड़ा कोई पुण्य नहीं है।
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने वचन दिया था कि अच्छे लोगों के तारण के लिए और बुरे लोगों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए वो हर युग में अवतार लेंगे।
कलियुग में श्री कृष्ण भगवान ने जगन्नाथ के रूप में अवतार लिया और नीलांचल पर्वत पर बस गए। पर्वत समय के साथ भूमि में समा गया। लेकिन नीलांचल की धरती जगन्नाथ पुरी के नाम से सदा-सदा के लिए पूजनीय हो गयी।
क्यों जगन्नाथ रथ यात्रा मनाया जाता है?
आत्मा से परमात्मा की यात्रा श्रद्धा के जीस पथ पर चलकर पूरी होती है। उसका सबसे पावन अंश हैं, चार धाम जहाँ चार अवतारों में भगवान विष्णु पूजे जाते हैं। श्री जगन्नाथ पुरी ऐसा ही पावनधाम है, जहाँ प्रभु जगन्नाथ के रुप में साक्षात भगवान विष्णु विराजमान है।
रथ यात्रा उत्सव कहाँ मनाया जाता है?
जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा उड़ीसा के जगनाथ पूरी में मनाया जाता है। इस पावन चार धाम में से एक पवित्र धाम में लाखो की संख्या में भीड़ हर साल श्री जगन्नाथ के दर्शन और रथयात्रा में शामिल होने के लिए आते है। कहते है इस रथयात्रा में शामिल होने से मृत्यु के पश्चात् वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा कब है?
July 1, 2022 को इस साथ रथयात्रा की तिथि बताई गई है।
जगन्नाथपुरी क्यों प्रसिद्ध है?
क्यूंकि यह चार धाम की यात्रा में से एक पवित्र धाम है। कहते है इस रथ यात्रा में शामिल होना मतलब 100 यज्ञो के पुण्य का भागिदार बनना, इसीलिए जगन्नाथ पूरी रथ यात्राका विशेष महत्व हमारे पुराणों में बताया गया है।
रथ यात्रा का महत्व क्या है?
पुराणों में वर्णन है कि एक बार श्री कृष्ण की पटरानियों को माता रोहिणी श्रीकृष्ण भगवान और गोपियों की प्रेम कथाएं सूना रही थी। श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा भी उस समय वहाँ पे थी, लेकिन उनका उस समय ये कहानियाँ सुनना उचित नहीं था।
माता के आदेश पर फिर दरवाजे के बाहर जाकर खड़ी हो, उसी समय श्री कृष्ण भगवान और उनके बड़े भाई बलराम वहाँ पर आ पहुँचे।
सुभद्रा ने दोनों भाइयों को दरवाजे पर ही रोक लिया, लेकिन अंदर की आवाज़ बाहर आती रही और तीनों, वो अद्भुत प्रेम लीलाए सुनते रहे।
माता रोहिणी का वर्णन था ही कुछ ऐसा, वो तीनो प्रेम द्रवित हो उठे। उसी समय नारद मुनि वहाँ पहुंचे और उन्होंने प्रार्थना की कि इसी प्रेम द्रवित रूप में वो तीनो विराजमान हो।
श्री कृष्ण ने वचन दिया कि वो कलयुग में सुभद्रा और बलभद्र के साथ श्री जगन्नाथ के नाम से दारू विग्रह यानी काट की मूर्तियों में विराजमान होंगे।
कलयुग के इस पावन धाम में राजा इंद्द्युम को काट की शिला में दर्शन देकर भगवान जगन्नाथ नीलांचल की धरती पर बस गए।
काट की उस विशाल शिला से प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की प्रतिमाएं स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से रची थी।
कालचक्र में चारों युगों का जितना महत्व है, तीर्थ में चार धाम भी उतने ही महत्वपूर्ण है। कि चार धाम चारों दिशाओं को पवित्र कर रहे हैं।
उत्तर, दक्षिण और पश्चिमी जहाँ सतयुग, द्वापर और त्रेता युग के धाम है, वहीं पूर्व में श्री जगन्नाथ पुरी कलयुग का अकेला स्थान है, और बद्रीनाथ में नारायण, द्वारका में कृष्ण और रामेश्वर में राम के नाम से भगवान विष्णु हर युग में पूजे गए हैं।
कलयुग में इस परम शक्ति का रूप भगवान श्री जगन्नाथ है, और जगन्नाथपुरी में साक्षात भगवान विष्णु का वास है। इसलिए कलयुग में जगन्नाथ धाम से पावन कोई और धाम हो ही नहीं सकता।
भक्ति का प्रेम बन जाना ही सबसे बड़ी भक्ति है। जिसे भगवान से प्यार हो गया हो, वो दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से ऊपर उठ गया, पवित्र हो गया।
इसी श्रद्धा और प्रेम का दर्शन होता है, बलभद्र और सुभद्रा और जगन्नाथ प्रभु की उस अलौकिक रूप में जिसे प्रेम रूप कहा जाता है।
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