रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं? रक्षाबंधन का इतिहास

रक्षाबंधन क्यों और कब से मनाया जाता है?
हम हर साल रक्षाबंधन मनाते है। पर कई बार यह प्रश्न हमे उठता है, की हम रक्षाबंधन क्यों मनाते है। और इसके पीछे रक्षाबंधन का इतिहास क्या है।
रक्षाबंधन प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है,और हमारे पुराणों में भी इसका जिक्र किया गया है, और रक्षाबंधन से जुडी कई पौराणिक कहानिया मिलती है। आज हम इन्ही सब कहानियो का महत्त्व समझायेंगे के क्यों रक्षाबंधन मनाया जाता है, और क्यों यह पर्व का इतना महत्त्व है।
भविष्य पुराण की यह कथा के अनुसार एक बार देव असुर संग्राम हुआ,असुर देवताओ पर भारी पड़ने लगे , इंद्र घबराकर बृहस्पति के पास चले गए। और उनसे उपाय मांगने लगे।
तब देवी इंद्राणी वहा पर उपस्थित सब सुन रही थी। तब देवी इंद्राणी ने युद्ध में जाने से पहले इंद्राणी ने रक्षा सूत्र मंत्र के साथ पुरोहितो द्वारा स्वस्तिवाचक करके बंधवा दिया और इस रक्षा सूत्र के धागे के प्रभाव से इंद्र युद्ध में विजय हुवे। तभी से रक्षा सूत्र बँधवानेका महत्त्व बढ़ने लगा।
एक दूसरी कथा महाभारत महाकाव्य में भी मिलती है। जो श्री कृष्ण और द्रौपदी के बिच की है।
जब भगवन श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया, तब श्री कृष्ण की उंगली से लहू निकलने लगा, तब द्रौपदी यह देखकर अपनी साडी फाड़कर उनकी उंगली में बांध देती है।
यह देखकर श्री कृष्ण ने द्रौपदी को पुरे जीवन उसकी रक्षा करने का आशीर्वाद दिया था। इसीलिए जब द्रौपदी चीरहरण में स्वयं भगवान् ने द्रौपदी के चिर पुरकर द्रौपदी की रक्षा की थी।
एक और कथा स्कन्द पुराण, पद्म पुराण, और श्रीमद भागवत पुराण में भी रक्षाबंधन की कथा मिलती है , कथा के अनुसार राजा बलि १०० यज्ञ करवाने जा रहे थे ,यज्ञ करने का उद्देश्य स्वर्ग को पाना था।
अगर राजा बलि के यह १०० यज्ञ पुरे होनेपर उनको स्वर्ग का सिंघासन प्राप्त हो जाता। तब देवराज इंद्र सिंघासन को अपने हाथ से जाता देख ,उसकी रक्षा हेतु भगवान् विष्णु के पास पहुंचे और उनसे सहायता मांगी।
तब भगवान् विष्णु ने वामन का अवतार धारण किया। राजा बलि बड़ा दानवीर था। वह अपने द्वार पर आने वाले को कभी वापस नहीं भेजता था।
तब वामन अवतार ने उनसे तीन पैर भूमि माँगी। तब राजा बलि उनको तीन पैर भूमि दान में देदी।
तब भगवन विष्णु ने अपना वामन अवतार इतना बड़ा और विशाल कर दिया और एक पैर में स्वर्ग ,और दूसरे पैर में पृथ्वी माप ली और फिर कहा – अब तीसरा पैर कहा रखु ,तब राजा बलि ने कहा – आप तीसरा पैर मेरे मस्तक पे रख दीजिए।
भगवन विष्णु राजा बलि के वचन से प्रसन्न होकर, उन्हें पातळ लोक का अधिपति बना दिया। फिर राजा बलि ने अपनी भक्ति के प्रभाव से भगवान् विष्णु से उनको अपने साथ ले जाने का वचन मांग लिया। और फिर भगवान् विष्णु को राजा बलि का द्वारपाल बनना पड़ा। तब माता लक्ष्मी बड़ी चिंता में पड़ गई।
तब नारदमुनि ने उनको एक सुझाव दिया के राजा बलि को अपना भाई बना ले। माता लक्ष्मी एक स्त्री का रूप धारण कर राजा बलि के पास जाकर रोने लगी। और बोली मेरा कोई भाई नहीं है।
तब राजा बलि ने माता लक्ष्मी को अपनी बहन बनाया और बदलेमे वचन लिया के वह भगवान् विष्णु को वहा से ले जाये।
इस प्रकार नारदजी की युक्ति से माता लक्ष्मी ने राजा बलि को भाई बनाकर राजा बलि को राखी बाँधी थी और फिर उपहार में राजा बलि से भगवान् विष्णु को मांग लिया था।
एक कथा यमराज और उनकी बहन यमुना से जुडी हुई है। एक बार यमुना ने अपने भाई यमराज को राखी भेजी, राखी देखकर यमराज इतने प्रसन्न हुवे के उन्होंने देवी यमुना को अमरत्व का वरदान दे दिया।
तभी से यह कहा जाता है, की रक्षाबंधन के दिन जो बहन अपने भाई को राखी भेजता या बंधवाता है। तो यमराज स्वयं उनके प्राणो की रक्षा करते है।
राखी का त्यौहार इंद्र – इंद्राणी, श्री कृष्ण – द्रौपदी ,राजा बलि – माता लक्ष्मी और यमराज – यमुना से जुड़ा हुआ है। इस प्रकार रक्षाबंधन प्राचीन समय से मनाया जाता रहा है। इसीलिए रक्षाबंधन के त्यौहार का इतना अधिक महत्त्व है।