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स्वयं महादेव से सुने महाशिवरात्रि व्रत कथा के बारे मे..

जाने अत्यंत कल्याणकारी महाशिवरात्रि व्रत कथा के बारे मे…

महाशिवरात्रि व्रत कथा || Mahashivratri Vrat Katha || Mahashivratri ki Kahani

महाशिवरात्रि व्रत कथा
महाशिवरात्रि व्रत कथा

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर शिव की पूजा के साथ, महाशिवरात्रि व्रत कथा सुनने का भी अधिक महत्व है। एकबार माता पारवती ने शिवजी से पूछा, के ऐसा कोनसा व्रत, तथा पूजन है, की मृत्युलोक के प्राणीमात्र, आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर सकते है।

तब महादेव ने स्वयं, महाशिवरात्रि व्रत कथा की यह कथा, माता पारवती को सुनाई थी। शिव पुराण में वर्णित यह कथा,जो हमे सिखाती हे, की शिव की प्राप्ति कितनी सहज हे।

अगर आप व्रत का पालन नहीं भी करते है, तब भी आप, इस कथा के सुनने से भी पुण्य के भागी बनेंगे। आइये सुनते है सम्पूर्ण कथा। तो वीडियो पर अंत तक ज़रूर बने रहिएगा।

एक बार एक शिकारी था शिकारी पर साहूकार का क़र्ज़ चुकाना बाकि था ,समय पे क़र्ज़ न चुकाने के कारन साहूकार ने उसे बंदी बना लिया।

तब उस दिन शिवरात्रि थी, शिकारी ने पुरे दिन शिव का स्मरण किया। अचानक से साहूकार ने उसे एक दिन और दे दिया और उसे छोड़ दिया।

शिकारी ने कुछ खाया पिया नहीं था। वह भूख से व्याकुल था। तब उसने जंगल में शिकार करने की सूजी। दिन ढलता गया, और रात हो गई, तब उसने बेल का पेड़ देखा, और वह उसपे चढ़ गया।

रात बीतने की प्रतीक्षा करने लगा। बेल के पेड़ के निचे शिवलिंग था। शिकारी, अनजाने में बेल के पत्ते को तोड़ता, और निचे गिराता। और वह पत्ते शिवलिंग पे गिरते।

इस प्रकार, अनजाने में भूखा रहने से, उसका व्रत भी हो गया। और शिवलिंग पे बेल पत्ते चढ़ने से, शिव की आराधना भी हो गई। 

एक समय, रात को एक हिरणी पानी पिने आई। शिकारी ने धनुष ताका, पर हिरणी ने शिकारी को देख लिया। और बोली, में गर्भवती हु।

मुझे मारने से, आपको दोदो हत्या का पाप लगेगा। मुझे मत मारिये ,में वचन देती हु, में बच्चे को जन्म देकर, तुम्हारे पास वापस आ जाउंगी ।

शिकारी ने उसे जाने दिया। तब धनुष बाण वापस लेते समय, शिवलिंग पे बेलपत्र गिरते है। इससे प्रथम प्रहार की शिवपूजा हो जाती है।

वापस से, एक और हिरणी वहा पर आती हे।  शिकारी खुश होकर धनुष ताकता है। तब वह हिरणी भी शिकारी से निवेदन करती हे।  की में अभी अभी ऋतु से निवृत हुई हु।  और कामातुर हु ,मुझे मेरे पति के पास जाना हे। 

उनसे मिलकर में तुम्हारे पास वापस आ जाती हु। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। शिकारी भूख से व्याकुल हो उठा था।  और चिंतित था।  की वह शिकार नहीं कर पाया है।

तब रात्रि का आखरी प्रहर बीत रहा था। तब कुछ बेलपत्ते, शिवलिंग पर वापस गिरे, तब उसके तूसरे प्रहर की भी पूजा हो गई।

तब एक और हिरणी, अपने बच्चो के साथ वहा आई। और शिकारी ने धनुष ताका, तब हिरणी तुरंत बोली। हे शिकारी, मुझे मत मारो। तब शिकारी ने कहा, में अब नहीं जाने दूंगा। पहले ही दो शिकार जाने दिए है।

तब हिरणी बोली, में इन बच्चो को, उनके पिता के पास पहुँचाकर, में शीघ्र ही वापस आजाऊंगी। में आपको वचन देती हु।

ऐसे करते हुवे सुबह हो गई। और शिकारी भूखा रहा। तो उसका उपवास भी हो गया। रात्रि का जागरण भी हो गया। और बेलपत्र गिरने से, शिव की पूजा भी हो गई।

तभी एक नर हिरन वहा से जा रहा होता है। और शिकारी ने तुरंत तनुष ताका, और शिकार करने का निर्णय ले लिया।  तब हिरन ने शिकारी को देख कहा। 

अगर तुमने मुझसे पहले तीन हिरणी, और उसके बच्चो का शिकार कर लिया हो। तो मुझे भी मार्दो।  अन्यथा, मुझे जीवनदान देदो। में उनसे मिलकर, तुरंत आपके पास प्रस्तुत हो जाऊंगा।

तब शिकारी ने हिरन की बात सुनकर, उसने पूरी रात का घटनाक्रम हिरन को बताया।

तब हिरन ने कहा।  जैसे वह तीनो वचनबद्ध होकर गई हे।  वैसे ही में भी तुम्हे वचन देता हु।  की में भी उनसे मिलकर के सहपरिवार के साथ, यहाँ उपस्थित हो जाऊंगा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

शिवरात्रि पूजा,उपवास, और जागरण से, उसका मन शुद्ध, और निर्मल हो गया था।

कुछ समय बाद, जब सहपरिवार उसके पास वापस आ गया। तब शिकारी ने उसकी सच्चाई,प्रेमभावना, और वचनबद्धता देखकर, शिकारी को आत्मग्लानि हुई।

शिकारी ने हिरन के परिवार को जाने दिया। और अनजाने से शिवरात्रि व्रत होने से भी, शिकारी को मृत्यु के पश्चात् शिवलोक प्राप्त हुवा।  इस प्रकार अनजाने  से हुवे व्रत से भी शिव की प्राप्ति हो सकती है।

इसी लिए शिवरात्रि पर व्रत, पूजा, और रात्रिजागरण का अधिक महत्व बताया गया है।

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