श्रीं बांके बिहारी मंदिर का रहस्य | बांके बिहारी मंदिर का इतिहास

श्रीं बांके बिहारी मंदिर का रहस्य  बांके बिहारी मंदिर का इतिहास
श्रीं बांके बिहारी मंदिर का रहस्य बांके बिहारी मंदिर का इतिहास

श्रीं बांके बिहारी मंदिर का रहस्य | बांके बिहारी मंदिर का इतिहास

श्रीं बांके बिहारी मंदिर मथुरा वृंदावन को भगवान् श्रीं कृष्ण का धाम माना जाता है। यह बहुत ही पवित्र धाम है। वृन्दावन में भगवान् कृष्ण की अनेक लीलाए मिलती है, और आज भी कई लोग भगवान् को उसी वृन्दावन में कृष्ण लीला का अनुभव करते है। आज भी कई लोगो की आस्था है, की राधा कृष्ण की रास लीलाए शाम के समय में यहाँ होती है। इसी लिए वृन्दावन वासी रात को जल्दी सोजाया करते है, क्यूंकि भगवान् की रास लीला इतनी ऊर्जावान होती है की उसे देखि नहीं जा सकती। तो चलिए जानते है, श्री कृष्ण के वृन्दावन धाम की ऐसी और रहस्य्मय बाते, तो अंत तक ज़रूर बने रहे।

बांके बिहारी मंदिर कब बना?

बांके बिहारी मंदिर भगवान कृष्ण का ही स्वरूप है। मथुरा के वृंदावन में बाके बिहारी का मंदिर स्थित है। स्वामी हरिदास ने इसका निर्माण 1864 में करवाया था।

भगवान को पर्दे में क्यों रखा जाता है?

एक बार एक भक्त था। जो बाके बिहारी के दर्शन के लिए आया था। वह दर्शन करते-करते बहुत समय तक बाके बिहारी जी को देखता रहा। इसीलिए भगवान रिज गए और उन्ही के साथ उनके गांव चले गए। यहां पर मंदिर के स्वामी जी को जब पता चला तो वह उनके पीछे गए और बड़ी मुश्किल से बाके बिहारी को वापस लेकर आये। तब से बाके बिहारी के दर्शन के लिए झांकी दर्शन को व्यवस्था की हुई है। झांकी दर्शन में भगवान के सामने थोड़ी थोड़ी देर में पड़दे डाले जाते है, ताकि कोई निरंतर उनको देख ना सके।

बांके बिहारी की मूर्ति कैसे प्रकट हुई?

मान्यता है, की बाके बिहारी जी की मूर्ति को किसी ने बनाया नही है, यह प्रतिमा अपने आप उत्पन्न हुई है। कहते है, की श्री हरिदास जी के अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर बाके बिहारी जी वृंदावन प्रकट हुए थे।

बांके बिहारी मंदिर में भगवान की काले रंग की मूर्ति है, जो श्री हरिदास जी ने खोजी थी। मान्यता है, की इस मूर्ति में राधा और कृष्ण दोनो कि ही छवी है। इसीलिए यहां पे आके जो भक्त दर्शन करते है, उनका जीवन सफल हो जाता है।

वृंदावन की विशेषता क्या है?

वृंदावन एक ऐसा स्थान है, जहा भगवान कृष्ण की अगिनित बाल लीलाएं है। यहा के लोग कहते है, की शाम के समय भगवान राधा और गोपियों के साथ आज भी रास लीला रचते है। इसीलिए शाम होने पर यहां कोई मनुष्य या पक्षी घर से बाहर नहीं निकलता। अगर कोई उन्हे रास लीला करते देख लेते है, तो वह उनकी अपार ऊर्जा शक्ति को सहन नही कर पाता। रात में बाके बिहारी जी रास करते है, इसीलिए उनके आराम करने के समय पे इस मंदिर में मंगला आरती नहीं की जाती।

बांके बिहारी मंदिर का रहस्य

यहां पर हर वर्ष मार्गशीष की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में भगवान बाके बिहारी जी का प्रगटोत्स्व मनाया जाता है। इस मंदिर में साल में सिर्फ एक बार ही बाके बिहारी जी के चरणो के दर्शन होते है। वह दिन होता है, अक्षय तृतीया, जो वैशक मास की तृतीया पे आता है। भगवान के चरणो के दर्शन अत्यंत शुभ माने जाते है।

बांके बिहारी नाम कैसे पड़ा?

श्री हरिदास जी श्री कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। एक समय पर वह हमेशा कृष्ण की भक्ति में लीन रहते और निधिवन में बैठकर अपने राधा कृष्ण के गानों से भगवान को प्रसन्न करने की कोशिश किया करते। उनके संगीत मई भक्ति भाव से भगवान प्रसन्न हो जाते थे और कई बार उनके सामने आ जाते थे।

हरिदास जी के शिष्य ने एक बार उनसे कहा की हमे भी भगवान के दर्शन करने है, तो कृपा करके हमे भी दर्शन का लाभ लेने दे। हरिदास जी इसके बाद फिर से भक्ति में लीन हो गए और फिर कृष्ण और राधा दोनो ही उनको दर्शन देने के लिए प्रकट हुए।

श्री कृष्ण और राधा ने हरिदास के संगीत से प्रसन्न होकर, उनके पास रहने को इच्छा व्यक्त की। तब हरिदास जी ने भगवान को बोला की वह उनको तो लंगोट पहना कर यहां रख लेंगे, परंतु माता राधा के लिए उनके पास कोई आभूषण नहीं है, क्युकी वह केवल एक संत है। ऐसा सुनकर श्री कृष्ण और राधा एक हो गए और एक होकर उनकी प्रतिमा प्रकट हुए और फिर हरिदास जी ने इनका नाम बाके बिहारी रखा।

बांके बिहारी की कथा

एक बार एक कृष्ण भक्त स्त्री ने अपने पति को वृंदावन जाने के लिए राजी किया था। वह दोनो वृंदावन पहुंचे और बाके बिहारी मंदिर जाकर दर्शन किए। थोड़े दिन वो लोग वहा पर रुक गए और बाके बिहारी के दर्शन किए।

वह स्त्री के पति ने उसको वापस घर जाने को कहा। तब उस स्त्री ने बाके बिहारी जी को प्रार्थना कि की वह हमेशा उसके साथ ही रहे। फिर दोनो घर जाने को निकल गए। वो लोग रेलवे स्टेशन जाने के लिए घोड़ागाड़ी में बैठे।

तभी बाके बिहारी जी बालरूप में आकर उन दोनो से विनती करने लगे की मुझे भी साथ ले जाए। इस तरफ मंदिर के पुजारी ने मंदिर में से बाके बिहारी जी को गायब देखा और वो वह कृष्ण भक्त स्त्री के प्रेमभाव को समझ गए।

तुरंत ही वह उस घोड़ागाड़ी के पीछे दौड़े और बालक रूप बाके बिहारी जी से प्रार्थना करने लगे। तभी वह बालक वहा से गायब हो गया और पुजारी वापस मंदिर लौटकर आये तो भगवान् वही पर थे, फिर भगवान् के दर्शन किये। ऐसी घटना होने से पति पत्नी ने संसार को त्याग दिया और बाके बिहारी जी की सेवा में अपने सारे जीवन को अर्पण किया।

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