काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा – शिव पुराण
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा – शिव पुराण
सूतजी कहने लगे, हे ऋषियों, जब भगवान ने दो में से एक होने की इच्छा जगाई, तो वे स्वयं शिव नामक सुगुण रूप बन गए, और दूसरे रूप में शक्ति बन गए।
इस प्रकार उन दोनों ने आकाशवाणी को सुना कि तुम दोनों को ऐसी तपस्या करनी चाहिए जिससे एक उत्तम सृष्टि की रचना हो।
तब उस पुरुष ने भगवान से पूछा कि किस स्थान पर तपस्या करनी है, इसलिए शिवजी ने आकाश में एक उत्कृष्ट नगर बनाया जो सभी आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित था।
वहा विष्णु जी ने सृष्टि की रचना की और श्रद्धाभाव से शिव जी का तप किया। तब अति परिश्रम के कारण बहोत सारी जलधारा बहने लगी और पूरा आकाश व्याप्त हो गया।
वह कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। इससे प्रभावित होकर, विष्णु जी अद्भुत लगा! और जब उन्होंने आश्चर्य से सिर हिलाया, तो उनके कान से एक मनका गिर गया। वह स्थान जहाँ यह मनका गिरा, वह मणिकर्णिका नामक एक प्रसिद्ध तीर्थ बन गया।
जब पूर्वोक्त जलराशि में पूरी नगरी डूबने लगी तब शिवजी ने अपने त्रिशूल पर पृथ्वी को धारण कर लिया। उस समय विष्णु अपनी पत्नी के साथ उसी स्थान पर सोए थे।
तब विष्णु की नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ और इस कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए ब्रह्माजी की उत्पत्ति में भी भगवान शिवाजी की ही इच्छा थी।
फिर उन्होंने शिव की आज्ञा से ब्रह्मांड की रचना शुरू की। उन्होंने ब्रह्मांड में चौदह भुवनों की रचना की। इस ब्रह्मांड के क्षेत्रफल को ऋषि-मुनियों ने पचास करोड़ योजन के रूप में दिखाया है।
फिर शिवजी ने सोचा की इस ब्रह्माण्ड मे कर्मो के बंधन से वह जीव मुझे कैसे प्राप्त करेंगे। इसलिए शिवजी ने मुक्तिदाईनी पंचक्रोशी को इस जगत में छोड़ दिया।
वहां शिव ने मुक्त नाम से एक ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। हे मुनिओ ! ब्रह्माजी के एक दिन के अंत होने पर प्रलय होता है।
उस समय पूरी जगत के नष्ट होने पर काशी क्षेत्र नष्ट नहीं होता है। प्रलय के समय नष्ट नहीं होगा काशी क्षेत्र क्योंकि शिवजी काशी विश्वनाथ क्षेत्र को उस समय अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं, और जब ब्रह्माजी द्वारा पुन: निर्माण किया जाता है, तब शिवजी उसके स्थान पर काशिक्षेत्र को फिर से स्थापित कर देते है।
काशी विश्वनाथ नगरी मनुष्य के पाप कर्मो का नाश करने वाली पवित्र नगरी है। काशी मुक्तेश्वर लिंग हमेशा इस काशी क्षेत्र में मौजूद है। यह मुक्तेश्वर लिंग मुक्ति का दाता है। जिनकी सदगति नही होती उनकी सदगति इस काशी विश्वनाथ क्षेत्र में होती है, क्यूँकि यह सदाशिव को अति प्रिय है।
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