अजा एकादशी 2023: जाने तिथि, शुभ मुर्हत, पूजन और व्रत कथा

अजा एकादशी 2023: जाने तिथि, शुभ मुर्हत, पूजन और व्रत कथा
अजा एकादशी 2023: जाने तिथि, शुभ मुर्हत, पूजन और व्रत कथा

अजा एकादशी भगवान् विष्णु को समर्पित है। कहते है, अजा एकादशी की व्रत कथा को सुनने मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस अजा एकादशी का व्रत करने वाले के सभी पाप नष्ट हो जाते है, और व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग का भागिदार बनता है। तो चलिए जानते है। अजा एकादशी की तिथि, मुर्हत, पूजा और इसकी पुण्यफल दायिनी व्रत कथा के बारे में ,तो अंत तक ज़रूर पढ़े।

अजा एकादशी कब है?

वर्ष 2023 में अजा एकादशी व्रत 10 सितम्बर 2023 रविवार के दिन धारण किया जाएगा।

अजा एकादशी का शुभ मुहूर्त

एकादशी व्रत धारण करने वाले श्रद्धालु अगले दिन सुबह व्रत का शुभ मुहूर्त में पारण करते हैं। इसके लिए श्रेष्ठ मुहूर्त 05:55 से 08:23 तक 11 सितम्बर को रहेगा इस शुभ मुहूर्त की अवधि 03 घंटा 15 मिनट रहेगी। श्रद्धालु शुभ मुहूर्त में अपने एकादशी व्रत का पारण करें।

अजा एकादशी पूजन विधि

इस एकादशी के दीन सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि करके भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाकर फलो तथा फूलो से भक्ति पुर्वक पूजा करे। पूजा के बाद विष्णुसहस्त्र का पाठ करे।

दीन में निर्जल व्रत करे और रात्रि जागरण करे। दूसरे दिन ब्राह्मण को भोजन कराये और दान दक्षिणा देकर स्वयं भोजन करे।

अजा एकादशी व्रत कथा

एक बार कुंती पुत्र युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा ,हे भगवन ! भाद्रवद कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, और इस व्रत को करने की क्या विधि है, मुझे इस व्रत की कथा विधि और महात्म्य सुनाइए।

भगवान कृष्ण ने कहा – भाद्रपक्ष एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। यह समस्त पापो का नाश करती है। इस एकादशी को भगवन विष्णु जी का पूजन किया जाता है। इस दीन जो मनुष्य भगवान विष्णु की पूजा करता हे, उसे वैकुंठ की प्राप्ति होती है।

सतयुग में सत्यवादी हरिश्चंद नाम का एक सत्यवादी राजा था। उसने ऋषि विश्वामित्र को दक्षिणा चुकाने के लिए अपना सारा राज्य त्याग दिया और साथ ही अपनी पत्नी ,पुत्र और स्वयं को बेच दिया। 

वह राजा चंडाल का दास बन गया और सत्य को धारण कर मृतकों के वस्त्र धारण करता रहा। किसी प्रकार से वह सत्य से विचलित नहीं हुआ।

कही बार राजा विचलित होकर चिंता किया करता था की में कहा जाऊ ,क्या करु. जिसे मेरा उद्धार हो।  इस प्रकार कही वर्ष बीत गए। 

एक बार वह इसी चिंता में बैठा हुआ था, तभी गौतम ऋषि वहा आ पहुंचे। तब राजा ने उन्हें दंडव्रत प्रणाम किया और अपनी पुरी आपबीती सुनाई।

राजा हरिश्चंद्र की बात सुनकर गौतम ऋषि ने कहा की आज से सात दिन बाद भाद्रपक्ष की एकादशी आएगी इसे अजा एकादशी कहा जाता है।

इस दीन तुम्हे विधिपूर्वक व्रत करना है।  इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जायेगे।  इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए। 

राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत में जागरण किया पर इसी बीच  राजा का पुत्र सांप के डसने से मृत्यु को प्राप्त हुआ।

शव्या रानी द्वारा शव को समशान पर लाए जाने पर राजा ने शव्या से समशान का कर माँगा मगर असहाय शव्या के पास देने के लिए कुछ नहीं था।

इसलिए उसने अपनी चुंदड़ी के कोर को काटकर समशान का कर चुकाया। सत्य कथा व्रत के प्रभाव से राजा के समष्ट पाप नष्ट हो गए।

भगवान विष्णु ने साक्षात् प्रकट होकर राजा हरिश्चंद्र के सत्य की बहुत प्रशंसा की। और स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पो की वर्षा होने लगी।

भगवान की कृपा से राजा का पुत्र जीवित हो गया और उन्हें उनका राज्य भी वापस मिल गया। और फीर वह अन्य सुखो को भोगकर अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुए।

यह सब अजा एकादशी के प्रभाव से ही हुआ था। जो मनुष्य विधिपूर्वक पुरे मन के साथ इस व्रत को करता है और रात्रि जागरण करते है उनके सारे पाप नष्ट हो जाते है।

इसे सुनने मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। वे सुखी जीवन बिताकर अंत में स्वर्ग को प्राप्त होते हे।

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